सभ्यताएँ बदल जाती हैं
किंतु संस्कृति नही बदलती
सभ्यताओं का कोई आस्तित्व नही होता!
सभ्यताओं का ना तो कोई आस्तित्व था, ना है, और ना होगा, और ना ही होना चाहिए! सभ्यता मानव के सुख के लिए होती है! मानव सभ्यताओं की रक्षा हेतु नही होता!
सभ्यता ही जब मानव पर भारी हो जाए, तो मानव को स्तर्क हो जाना चाहिए! समझ लेना चाहिए, कि अब वो धर्म को साक्षात देख नही पाएगा! उसका पतन शुरू हो चुका है!
समाज की बनी हुई मान्यताएँ ही समाज की सभ्यता का आकर लेती है! सभ्यता और कुछ भी नही!
सभ्यता का और मानव समाज की मान्यताओं का, समय के साथ विस्तार होना जरूरी है!
यह तो अच्छा है कि भारत की सभ्यता बदल रही है! अपने आप को समझने की चेष्टा कर रही है!
यही धर्म है!
बिलकुल सहमत हूँ मैं
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सच कहा है आपने ह
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